वांछित मन्त्र चुनें

आ॒त्मन्नु॒पस्थे॒ न वृक॑स्य॒ लोम॒ मुखे॒ श्मश्रू॑णि॒ न व्या॑घ्रलो॒म। केशा॒ न शी॒र्षन् यश॑से श्रि॒यै शिखा॑ सि॒ꣳहस्य॒ लोम॒ त्विषि॑रिन्द्रि॒याणि॑ ॥९२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒त्मन्। उ॒पस्थ॒ऽइत्यु॒पस्थे॑। न। वृक॑स्य। लोम॑। मुखे॑। श्मश्रू॑णि। न। व्या॒घ्र॒लो॒मेति॑ व्याघ्रऽलो॒म। केशाः॑। न। शी॒र्षन्। यश॑से। श्रि॒यै। शिखा॑। सि॒ꣳहस्य॑। लोम॑। त्विषिः॑। इ॒न्द्रि॒याणि॑ ॥९२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:19» मन्त्र:92


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसके (आत्मन्) आत्मा में (उपस्थे) समीप स्थिति होने में (वृकस्य) भेड़िया के (लोम) बालों के (न) समान वा (व्याघ्रलोम) बाघ के बालों के (न) समान (मुखे) मुख पर (श्मश्रूणि) दाढ़ी और मूँछ (शीर्षन्) शिर में (केशाः) बालों के (न) समान (शिखा) शिखा (सिंहस्य) सिंह के (लोम) बालों के समान (त्विषिः) कान्ति तथा (इन्द्रियाणि) श्रोत्रादि शुद्ध इन्द्रियाँ हैं, वह (यशसे) कीर्ति और (श्रियै) लक्ष्मी के लिये प्राप्त होने को समर्थ होता है ॥९२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो परमात्मा का उपस्थान करते हैं, वे यशस्वी कीर्तिमान् होते हैं। जो योगाभ्यास करते हैं, वे भेडि़या, व्याघ्र और सिंह के समान एकान्त देश सेवन करके पराक्रमवाले होते हैं। जो पूर्ण ब्रह्मचर्य करते हैं, वे क्षत्रिय भेड़िया, व्याघ्र और सिंह के समान पराक्रमवाले होते हैं ॥९२ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आत्मन्) आत्मनि (उपस्थे) उपतिष्ठन्ति यस्मिंस्तस्मिन् (न) इव (वृकस्य) यो वृश्चति छिनत्ति तस्य (लोम) (मुखे) (श्मश्रूणि) (न) इव (व्याघ्रलोम) व्याघ्रस्य लोम व्याघ्रलोम (केशाः) (न) इव (शीर्षन्) शिरसि (यशसे) (श्रियै) (शिखा) (सिंहस्य) (लोम) (त्विषिः) दीप्तिः (इन्द्रियाणि) श्रोत्रादीनि ॥९२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यस्यात्मन्नुपस्थे सति वृकस्य लोम न व्याघ्रलोम न मुखे श्मश्रूणि शीर्षन् केशा न शिखा सिंहस्य लोमेव त्विषिरिन्द्रिययाणि सन्ति, स यशसे श्रियै प्रभवति ॥९२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये परमात्मानमुपतिष्ठन्ते ते यशस्विनो भवन्ति, ये योगमभ्यस्यन्ति ते वृकवद् व्याघ्रवत् सिंहवदेकान्तदेशं सेवित्वा पराक्रमिणो जायन्ते, ये पूर्णब्रह्मचर्यं कुर्वन्ति ते क्षत्रियाः पूर्णोपमा भवन्ति ॥९२ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे परमेश्वराच्या सानिध्यात असतात ते यशस्वी कीर्तिमान होतात. जे योगाभ्यास करतात ते लांडगे, वाघ, सिंह त्यांच्याप्रमाणे कांतवासी व पराक्रमी असतात. जे पूर्ण ब्रह्मचारी क्षत्रिय असतात तेही लांडगे, वाघ, सिंह यांच्याप्रमाणेच पराक्रमी असतात.